Who started dowry in Hindi – देहज को किसने पहली बार शुरू किया था ?

हमारे देश में अक्सर लोग लड़की पैदा होने पर न खुश होते है. कुछ लोग ऐसे भी है जो पैदा होने से पहले ही मार देते है . इसका एक सबसे बड़ा कारण है दहेज़.

इंडियन नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक हर 90 मिनट में एक महिला की मौत सिर्फ दहेज़ के कारण होती है. 

ये सब सुनने के बाद अक्सर हम ये सोचने पर मजबूर हो जाते है के इस दहेज़ सिस्टम को पहले किसने शुरू किया था.

शुरू ज़माने में  लड़कियों का स्वयंवर होता था. जिसके चलते लड़के लड़की के लिए तोहफे लाते और अलग अलग तरीकों से अपनी बहादुरी दिखाते फिर लड़की अपने पसंद का लड़का चुनती थी.

11वि सदी से पहले कोई भी दहेज़ का सवाल करने वाला नहीं था. उस ज़माने में माँ बाप अपनी ख़ुशी से बेटी की आगे की ज़िंदगी अच्छी रहे कोई परेशानी ना आये इसीलिए उन्हें अपनी सम्पत्ति का कुछ हिस्सा लड़की के नाम कर देते थे.

अगर माँ बाप को कोई बेटा नहीं होता थो जायदाद में बेटी का ही हिस्सा होता था. अगर बेटी के साथ बेटा भी होता थो बेटी को चौथा हिस्सा मिलता.

अगर माँ बाप शादी से पहले ही मर गए हो थो उस लड़की के सरपरस्त शादी होने तक उस दौलत को संभल के रख ते और शादी के बाद लड़की के हवाले कर देते थे.

दहेज़ सिस्टम शुरू होने का सबसे बड़ा कारण ब्रिटिश राज को जाता है. जब ब्रिटिश राज आया थो उन्होंने एक घटिया नियम ये लगाया के विरासत के माल में बेटी का कोई हिस्सा नहीं होगा. अब इसके बाद बेटी के बदले संपत्ति दामाद के नाम करदी जाती थो वहासे दहेज़ व्यवस्था शुरू हुआ.

1956 में बेटा और बेटी के लिए बराबर स्टेटस का नियम लाया गया. आज भी अक्सर लोग दहेज़ मांगने की वजह से बहुत सारे लड़कियाँ बिना शादी के भूड़ी हो रही है या फिर अपने आप को मौत के हवाले कर रही है।

आज भी इंडिया में बहुत सारे जगाओं में दहेज़ लिया जाता है. लड़की के माँ बाप डरते है अगर हम दहेज़ नहीं दिया हो पता नहीं हमारी बेटी के साथ क्या होगा. हर लड़के के माँ बाप बस यही कहते है हम बच्चे के पड़ने,लिखने में बहुत खर्च किया इसलिए आपको दहेज़ देना पड़ेगा.

अब इस पीढ़ी के बच्चे जो समझदार है वो थो चाहते है के बिना दहेज़ के शादी होजाये लेकिन माँ बाप के सामने बच्चों की कहा चलती है.

इंडिया में दहेज़ का लेना हर मज़हब में बुरा माना जाता है और बहुत सारे लोग इसे रोकने की बहुत कोशिशें भी कर रहे है लेकिन हज़ार कोशिशों के बाद भी दहेज़ लेने वाले सुनने के लिए तैयार नहीं है.

अब किस वजह से या किस व्यक्ति ने इस दहेज़ सिस्टम को शुरू किया ये तो कहना मुश्किल है हम सब को इसके खिलाफ खड़े रहना चाहिए.

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